गुरुवार, 11 जून 2009

समझ नहीं आता राम को जानूं के मानू

आज अमेरिका , ब्रिटेन जैसे तरक्की कर कहाँ से कहाँ पहुंचे ,जबकि भारत विश्व धर्म गुरु रहा है । धर्म यानि सत्य ;समाज में सहकारिता के साथ जीवन जीने के लिए एक नियोजित कार्यक्रम । अगर हम इस डेफिनेशन के साथ धर्म को समझें , तो देश , काल , परिस्थिति में चमत्कारिक बदलाव हो ,
" लेकिन हम भारतीय चमत्कारिक ढंग से अपनी स्थिति सुधरने में , विस्वास करते हैं , जबकि उपरोक्त विकसित देश चमत्कारिक ढंग से अपनी स्थिति सुधारने में विस्वास करते हैं । "
हमने अवतारों के साथ काफ़ी हद तक अन्याय किया ,हमने राम के साहस की प्रसंशा की ,लेकिन यह न देखा की , ३ जगत में जिस रावण का डंका बजता हो, मृत्यु जिसके पलंग के पाये से बंधी रहती हो , अपने पुत्र जन्म के समय जो अक्काश मंडल में जाकर ग्रह स्तिथि का निर्माण स्वयम करके आया हो , और ग्रहों से कहकर आया हो " हिल मत जाना मेरी बताई जगह से " । यह बातें क्या उस ज़मानेमें किसी ने राम के साहस को डिगाने लोगों ने बताई न होंगी । आज अगर हम किसी दुसरे मुहल्ले के चुरकुट गुंडे से भी भिड जाएँ तो ,लोग कहते हैं , अरे भइया कहाँ लगे हो , उसके सर पर मंत्री जी का हाथ है , टीआई तक उससे नज़रें नहीं मिला पाता।
महज़ जनेऊ , और धनुष बाण , लिए राम चल दिए थे , विश्वविजेता को मजा चखाने ।
सीताजी का अपरहण वनवास के १४ वे साल में हुआ था , राम चाहते तो , दूसरा विवाह कर सकते थे , उस ज़माने में यह बड़े सम्मान के साथ सम्भव था । चाहते तो कह देते , पता नहीं कहाँ चली गई , हम तो जंगल में फल-फूल लेने गए थे ।
अवतारों को अपने अवतार होने का कत्तई ज्ञान नहीं होता , उन्हें अवतार माना जाता है । कसोत्तियों पर उतरने के बाद ।

आइये विचार करें ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. गगन, यह आपने अच्छी बात उठाई है. सवाल हमको यह पूछना चाहिए की हम मानसिक और धार्मिक बल क्यों नहीं जुटा पा रहे है? किसका डर है जो हमको रोके हुए है? अपनी बात तो दूर हम आने वाली पीडी को भी डरपोक बना रहे है.

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  2. sir in my heart i have a special space resrved for Lord Hanuman...but i dont know why...and i cant xplain it...and after reading this article...you make me think over it...

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