रविवार, 7 जून 2009

१८९३ अमेरिका में


मेरा हिन्दुस्तान आज भाग्य के फेर से और अपनी अकर्मण्यता , पौरुष हीनता के कारण दाने दाने का मोहताज़ हो रहा है , ऐसे देश को में त्याग धर्म की शिक्षा क्या दूँ , में तो अपने देशवासियों से यही कहूँगा के प्यारे ! कमाओ, खाओ, और धन संग्रह करो ।


स्वामी विवेकानंद ।

१८९३ शिकागो ।

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